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Showing posts from May, 2023

#चिरंजीवी स्वास्थ्य बीमा योजना की पोल खोलती पत्रिका की खबर ।मुख्यमंत्री अशोक गहलोत को यह खबर जरूर पढ़नी चाहिए। राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र लिखकर मांग की है कि राजस्थान में लागू मुख्यमंत्री चिरंजीवी स्वास्थ्य बीमा योजना को देशभर में लागू किया जाए ताकि गरीब आदमी का इलाज प्राइवेट अस्पतालों में मुफ्त में हो सके। सीएम गहलोत अपनी इस योजना को सबसे बड़ी और महत्वपूर्ण मानते हैं। गहलोत का दावा है कि ऐसी योजनाओं से खुश प्रदेश की जनता कांग्रेस की सरकार रिपीट कराएगी, लेकिन 7 मई को पत्रिका ने योजना की पोल खोल दी है। योजना की खामियों को बताता है जिसके अंतर्गत निजी अस्पतालों में मरीज का इलाज नहीं हो रहा है। पत्रिका की खबर को ब्लॉक में ज्यों का त्यों रखा जा रहा है, ताकि योजना की हकीकत आम लोगों तक पहुंच सके, पत्रिका ने यह सराहनीय कार्य किया है। सीएम गहलोत को भी पत्रिका की खबर जरूर पढ़नी चाहिए ताकि जमीनी हकीकत की जानकारी हो सके। पत्रिका की खबर:किसी मरीज को गंभीर निमोनिया है, पेट-दिमाग में संक्रमण, हृदय, कैंसर या किडनी सहित अन्य गंभीर बीमारी है तो उसकी जिंदगी बचाने के लिए पहले ही दिन 15 से 20 हजार रुपए की दवाइयों की जरूरत होती है। लेकिन चिरंजीवी बीमा में प्रतिदिन इलाज के लिए मात्र 6 हजार रुपए की पैकेज राशि गंभीर मरीज के उपचार में बाधा बन रही है। हैरत की बात यह है कि यह पैकेज गंभीर और सामान्य सभी बीमारियों के मरीजों के लिए एक समान है। यानी बीमा भले ही 25 लाख रुपए सालाना हो, लेकिन रोजाना 6 हजार रुपए से ज्यादा नहीं मिलेंगे, भले ही मरीज कितना भी गंभीर बीमार क्यों न हो। इसमें दवाइयां, जांच सब खर्च अनिवार्य है। अब या तो डॉक्टर अपनी जेब से खर्च करे, इससे ज्यादा खर्च होने पर डॉक्टर पैसे नहीं ले सकता और परिजन चिरंजीवी में होने के कारण देना नहीं चाहते। राजस्थान पत्रिका ने अलग-अलग निजी डॉक्टरों से योजना में आ रही परेशानियों की चर्चा की तो बोले, सरकार तो सक्षम है सरकारी अस्पताल में सब कुछ भुगतने के लिए निजी अस्पताल कहां से भुगतेंगे।इलाज लंबा चलने पर निजी अस्पतालों की मना:अस्पतालों में चिरंजीवी या दूसरी सरकारी योजना का पैकेज समाप्त होने के बाद रोजाना दर्जनों मरीज हमारे यहां आते हैं। पैकेज के बाद निजी अस्पताल मना कर देते हैं, लेकिन इन्हें हमें रखना पड़ता है। चिरंजीवी के वही पैकेज यहां भी हैं, लेकिन यहां निरोगी राजस्थान का विकल्प खुला है। सरकारी में भीड़ देखकर मरीज निजी में जाता है, पांच सात दिन बाद बजट खत्म हो जाता है तो वापस आ जाता है। चिरंजीवी में बीमारियों के कोड फिक्स हैं। किसी बीमारी के 60 हजार रुपए तय कर दिए, लेकिन इलाज लंबा चल रहा है तो निजी अस्पताल मना कर देगा।181 या संपर्क पोर्टल पर दें जानकारीचिरंजीवी से जुड़े अधिकारियों का दावा है कि योजना के पैकेज सभी खर्च का आकलन कर तय किए गए हैं। ब्लड आदि आवश्यकताओं पर इससे अधिक भी दिए जाते हैं। चिरंजीवी योजना में निजी अस्पताल की पैकेज दरों में इलाज में कमी या परेशानी की शिकायत 181 नंबर या संपर्क पोर्टल पर भी दर्ज करवाई जा सकती है।इन मरीजों को सबसे ज्यादा परेशानी:गंभीर मरीजों का उपचार चिरंजीवी बीमा में करने में बड़ी परेशानी आ रही है। यह मरीजों के जीवन में बाधा खड़ी कर रहा है। इसका सर्वाधिक खामियाजा निमोनिया सेप्टिक शॉक एआरडीएस और आईएलडी जैसी बीमारियों के मरीजों को उठाना पड़ रहा है। सच यह है कि गंभीर बीमार मरीज की जान बचाने के लिए पहले ही दिन 15 से 20 हजार रुपए का खर्च हो जाता है। लेकिन कई बार 6 हजार रुपए के बाद इलाज करना ही बंद कर देते हैं। अब अतिरिक्त खर्च कितने मरीजों पर निजी अस्पताल भुगतेगा।सरकारी अस्पताल में जाने की सलाह:कार्डियक के एक मरीज का पैकेज में इलाज किया गया। लेकिन उसकी जटिलता बढ़ती गई। पैकेज के बाद निजी में इलाज नहीं किया गया। उसे सरकारी में ही जाने की सलाह दी गई। चिकित्सकों के अनुसार पैकेज में बाद की जटिलता के इलाज की व्यवस्था ही नहीं की गई। सिर्फ बाध्य किया गया है कि निजी को उसी पैकेज में ही इलाज करना है।

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#संगरिया #किरण_गर्ग_चुनी_गई_एपेक्स_वुमन_क्लब_की_अध्यक्ष💐संगरिया की आवाज़-न्यूज़ एजेंसी बधाई 💐🌹💐क्लब की वार्षिक बैठक सम्पन्न- #संगरिया शहर की अग्रणी सामाजिक संस्था एपेक्स वुमन क्लब (रजि.) की वार्षिक सामान्य बैठक क्लब अध्यक्ष व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नीलम सोनी की अध्यक्षता में सदस्य नविता गोयल के घर पर हुई। बैठक में वार्षिक चुनाव सम्पन्न हुए जिसमें सर्वसम्मति से क्लब की सरंक्षक नीलम बंसल, अध्यक्ष किरण गर्ग, सचिव सुंदरी सोनी और कोषाध्यक्ष के पद पर ममता गर्ग का चयन किया गया। बैठक का प्रारंभ गणेश वंदना और प्रार्थना से हुआ। एपेक्स आइडियल्स स्वाति गुप्ता द्वारा पढ़ी गयी। नए पदाधिकारियों को शीघ्र ही समारोहपूर्वक पद व गोपनीयता की शपथ दिलवाई जाएगी। बैठक में गत वर्ष के कार्यों व भावी कार्यक्रमों की रूपरेखा पर विस्तृत चर्चा हुई। अध्यक्ष नीलम सोनी ने एपेक्स को इतनी ऊंचाइयों पर ले जाने का सारा श्रेय संस्था के सभी कर्मठ, डेडीकेटेड और सक्रिय सदस्यों को दिया, जिन्होंने निरंतर सेवा कार्यों में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। कोषाध्यक्ष नीलम बंसल ने बताया कि निर्जला एकादशी को पानी के दान का अत्यंत महत्व है तथा क्लब द्वारा हर वर्ष की भांति इस बार भी 31 मई को निर्जला एकादशी के उपलक्ष्य पर शरबत व नींबू पानी की छबील लगाई जाएगी तथा क्लब के स्थायी प्रकल्प के रूप में अग्रसेन मार्किट में राहगीरों के लिए वाटर कूलर की स्थापना की जाएगी। बैठक का समापन राष्ट्रीय गान से हुआ। बैठक में नीलम सोनी, नीलम बंसल, किरण गर्ग, सुंदरी सोनी, ममता गर्ग, पायल जैन, स्वाति गुप्ता, रचना यादव, नीरू सोमानी, रिम्पी गर्ग, नविता गोयल, डॉ. जयश्री, पिंकी अग्रवाल, नीतू गर्ग आदि सदस्य उपस्थित थे।

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#कौन_पास_कौन_फैलस्कूल में चल रहे '#न्यू_इडिया' कार्यक्रम के तहत मैने '#नये_भारत_के_समक्ष_चुनौतियाँ' पर अपना व्याख्यान समाप्त किया ही था कि प्राचार्य सर ने मुझे बुलाया और कहा आप अच्छा बोलते हो और लिखते भी हो। #शिक्षा_मंत्रालय_ने_आरटीई_पर_समीक्षा_रिपोर्ट_मांगी_है, तो जल्दी से रिपोर्ट तैयार करके ईमेल करो। मै समझ नहीं पाया कि इतने बड़े सरकारी मिशन पर क्या समीक्षा रिपोर्ट लिखू और वो भी हाथों-हाथ काफी देर सोचने के बाद मैने पिछले साल 9 मई की आप बिती को ही समीक्षा रिपोर्ट बनाने का फैसला कर कम्प्यूटर ऑन कर दिया ---9 मई की बात थी तेज तपती दुपहरी मे #जगदीपसिह अपने पिता के साथ अपना परीक्षा परिणाम जानने आया था। मैने दूर से देखते ही सातवीं कलाश के रिपोर्ट कार्डों मे से जगदीप का रिपोर्ट कार्ड बाहर निकाल लिया था। बहुत कम बातचीत मे मुझे लगा कि वे जल्दी में है तो मैने उनका कार्ड आगे करते हुऐ कहा बेटा यहां हस्ताक्षर कर दो उसने बड़ी मुश्किल से जोङ जोङ कर अपना अपना नाम जगदीप लिख दिया । मैने उनके बाप से भी हस्ताक्षर करने को कहा पर उन्होने असहमति में सिर हिला दिया । मैने कहा बेटा आप यहां इनका नाम लिख दो तो जगदीप ने बड़े #कॉन्फडेन्स से कहा गुरू जी मैनू मेरे बिणा किसे दा ना नी लिखना औंदा। (मेरे अलाव किसी का नाम नही लिखना आता) मैने दोनो की तरफ देखा और खुद ही सुखचैनसिह लिख दिया और रिपोर्ट कार्ड उनके हाथो में थमा दिया। उसके बाप ने पूछा साडा मुंडा पप्पू (घर का नाम) पास हो गया के जी, मेरे उतर की प्रतीक्षा करें बिना ही आगे बोला सारे मुंडे- कुडी पास हो गये। (सभी लड़के-लड़किया पास हो गये) मै सोच रहा था की अगर जगदीप सिंह पास हो गया तो फैल कोन हुआ ? क्या मै फैल हो गया ? क्या उसका बाप फैल हो गया ? क्या सरकार फैल हो गई ? क्या सिस्टम फैल हो गया ? क्या पुरा देश फैल हो गय ? मन तो कह रहा था कि एक ही झटके मे जवाब दे दू सब पर मुझे एक वफादार सरकारी शिक्षक होने का अहसास हुआ तो सरकारी शिक्षक के धर्म की पालना दिल पर पत्थर रख कर कहा, हॉ पप्पू यानी जगदीपसिह पास हो गया-सब पास हो गये केवल पास ? इतना कहते ही सुखचेनसिह मुस्कराते हुऐ कहा चकते फट्टे और जेब से चार-पांच टोफियाँ निकाली और हाथ आगे बढाते हुऐ कहा बहुत बहुत धनवाद जी धनवाद --- लो मुँह मिठा करो बहुत अच्छी टोफियॉ है #चूसो_जी_चूसो_चबाना_मत_जी कहते हुए चला गया मैने मेरी समीक्षा रिपोर्ट पूरी कर ली है और ईमेल भी कर दी है। (नोट: सामान्य पाठको की सुविधा के लिए सरल शब्दों में बता दू आरटीई एक ऐसा कानून है कि जिसमें किसी भी बच्चे को फैल नहीं किया जाता)फैल हो गये ! #राकेश_कुमार #राकेश ( प्राध्यापक, भादरा हनुमानगढ़) की कलम से संगरिया की आवाज़।

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#खरबूजे_की_खेती: कम पैसे में मोटी कमाई करने का मौका#sangariakiaawaz#Melon_Farming: कोरोनाकाल में कई रोगों से बचाता है खरबूजा, खूब खाईए और अपने सेहत का ख्याल रखिए.. जानिए इसकी फसल कैसे लगाई जाती है और किसान कैसे कमा रहे हैंदेश के अलग अलग हिस्से में 6 महीने खरबूजे की खेती होती हैखरबूजा ईरान, अनाटोलिया और अरमीनिया का मूल है. खरबूजा विटामिन ए और विटामिन सी का अच्छा स्त्रोत है. इसमें 90 फीसदी पानी और 9 फीसदी कार्बोहाइड्रेट होते हैं. भारत में खरबूजे उगाने वाली सब्जियों में राजस्थान,पंजाब, तमिलनाडु, महाराष्ट्र और उत्तर प्रदेश भी शामिल है.खरबूजा एक नकदी फसल है. फल पकते समय मौसम शुष्क तथा पछुआ हवा बहने से फलों में मिठास बढ़ जाती है. हवा में अधिक नमी होने से फल देरी से पकते है तथा रोग लगने की संभावना भी बढ़ जाती है.कैसे करें खरबूजे की खेती#डा_अनूपकुमार #कृषि_विज्ञान_केन्द्र_संगरिया के निर्देशन मे नाथवाना के प्रगतिशील किसान #अनूज_पुनिया_9887522718 चक मे आजकल सब्जीयों के उत्पादन पर विशेष अनुसंधान के साथ का काम कर रहे है. कई तरह की सब्जियों और तरबूज और खरबूजे (#रेड_परी, #लायलपुरी )की फसल का उत्पादन कर रहे है #हार्टिकल्चर_विभाग के #विभागाध्यक्ष_डाक्टर_महावीर_कंस्वा की देखरेख में इस सारे प्रोजेक्ट को देख रहे हैं. खरबूजा अब एक नकदी फसल के रुप में की जा रही है.बलुई मिट्टी सबसे उपयुक्त है खरबूजे के लिए खरबूजे के लिए गर्मी का मौसम सबसे उपयुक्त है इसलिए इसे लगाने का समय है. जनवरी की शुरुआत से लेकर फरवरी के अंत तक इसकी बेल लगाई जाती है.जमीन हल्दी रेतिली हो और तापमान 22 से 40 डीग्री के बीच हो तो फसल उत्पादन भी अच्छा रहता है. अगर इस समय पछुआ हवा चलने लगे तो फल में और मिठास आ जाती है.देश के अलग अलग हिस्से में 6 महीने खरबूजे की खेती होती हैवहीं अलग अलग प्रदेश में अलग महीने में इसकी बुआई होती है दक्षिण भारत में तो अक्टूबर में फसल लगती है जबकि बिहार में दिसंबर और जनवरी में वहीं उत्तर भारत के दूसरे प्रदेशों में फरवरी तक लगाई जाती है.कौन सी किस्म है बेहतरअब तो समतल जमीनों पर भी खेती की जाती है. जहां तक नस्ल की बात है तो इसमें पूसा मधुरस, अर्का राहंस, काशी मधु, दुर्गापूरा मधु, पंजाब सुनही, गुजरात खरबूजा जैसे कई किस्म अपने देश में खेती की जा रही है. इसमें क्षेत्र विशेष की भूमि की गुणवत्ता को आधार मानकर किसान फसल लगा रहे हैं.राजस्थान, हरियाणा के किसान हजारों एकड़ में कर रहे हैं खरबूजे की खेतीराजस्थान के हनुमानगढ़ जिले के संगरिया तहसील के नाथवाना मे आजकल खरबूजे के लिए महत्वपूर्ण आकर्षण का केंद्र बन गया है.कैसे लगाए जाते हैं खरबूजेफसलें हम दो बार लगाते हैं एक बार तो जनवरी के महीने में और दूसरे 15 फरवरी से एक 25 तक लगाते हैं.इसके पीछे यहीं कारण है कि दो महीने तक बाजार में हम अपनी उपज बेच सकें जनवरी में लगाई गई फसल अप्रैल में बाजार में आ जाती है,लेकिन फरवरी वाली मई की शुरुआत से लेकर पूरे महीने हमें आमदनी देती रहती है.अनूज पुनिया बताते हैं कि एक एकड़ में तीन से करीब क्यारी बनाते हैं हर क्यारी में बीज लगाते हैं या फिर दूसरे पारंपरिक तरीके से पौधे की लगाते हैं जैसे कलम विधि है.वहीं पानी की ज्यादा बचत हो इसके लिए मै अपनी फसल मंच विधि से लगाता हूूं वहीं हमारे यहां कई किसान ड्रीप विधि से फसल की पटवन करते हैं .शुरुआत में हमें 24 रुपये से 30 रुपये किलों के हिसाब कीमत मिलती हैहमारी फसल अप्रैल के पहले सप्ताह से कटनी शुरु हो जाती है इसका वजन एक किलोग्राम से डेढ दो किलोग्राम तक की हो जाता है..शुरुआत में हमे थोक में 24 से 30 रुपये किलोग्राम बेचते हैं.इसकी तुडाई एक खेत में 4 से 5 बार की जाती है. 1 सप्ताह से 15 दिनों में फसल तैयार होकर बाजार में पहुंच जाती है.एक एकड़ में 150 क्विंटल से 250 क्विंटल तरबूजे का उत्पादन हो जाता है यानी 5 लाख प्रति एकड़ के हिसाब माल बिक जाता और दो से ढाई लाख रुपये की कमाई हो जाती है.खरबूजे की खेती: कम पैसे में मोटी कमाई करने का मौका

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#सूने_होते_गांव_घर #पैकेजकिसी दिन सुबह उठकर एक बार इसका जायज़ा लीजियेगा कि कितने घरों में अगली पीढ़ी के बच्चे रह रहे हैं? कितने बाहर निकलकर जयपुर, बीकानेर, नोएडा, गुड़गांव, पूना, बेंगलुरु, चंडीगढ़,बॉम्बे, कलकत्ता, मद्रास, हैदराबाद, बड़ौदा जैसे बड़े शहरों में जाकर बस गये हैं? कल आप एक बार उन गली मोहल्लों से पैदल निकलिएगा जहां से आप बचपन में स्कूल जाते समय या दोस्तों के संग मस्ती करते हुए निकलते थे। तिरछी नज़रों से झांकिए.. हर घर की ओर आपको एक चुपचाप सी सुनसानियत मिलेगी, न कोई आवाज़, न बच्चों का शोर, बस किसी किसी घर के बाहर या खिड़की में आते जाते लोगों को ताकते बूढ़े जरूर मिल जायेंगे।आखिर इन सूने होते घरों और खाली होते मुहल्लों के कारण क्या हैं ?भौतिकवादी युग में हर व्यक्ति चाहता है कि उसके एक बच्चा और ज्यादा से ज्यादा दो बच्चे हों और बेहतर से बेहतर पढ़ें लिखें। उनको लगता है या फिर दूसरे लोग उसको ऐसा महसूस कराने लगते हैं कि छोटे शहर या कस्बे में पढ़ने से उनके बच्चे का कैरियर खराब हो जायेगा या फिर बच्चा बिगड़ जायेगा। बस यहीं से बच्चे निकल जाते हैं बड़े शहरों के होस्टलों में। अब भले ही जयपुर कोटा सीकर दिल्ली और उस छोटे शहर में उसी क्लास का सिलेबस और किताबें वही हों मगर मानसिक दबाव सा आ जाता है बड़े शहर में पढ़ने भेजने का। हालांकि इतना बाहर भेजने पर भी मुश्किल से 1% बच्चे IIT, PMT या CLAT वगैरह में निकाल पाते हैं...। फिर वही मां बाप बाकी बच्चों का पेमेंट सीट पर इंजीनियरिंग, मेडिकल या फिर बिज़नेस मैनेजमेंट में दाखिला कराते हैं। 4 साल बाहर पढ़ते पढ़ते बच्चे बड़े शहरों के माहौल में रच बस जाते हैं। फिर वहीं नौकरी ढूंढ लेते हैं । सहपाठियों से शादी भी कर लेते हैं।आपको तो शादी के लिए हां करना ही है ,अपनी इज्जत बचानी है तो, अन्यथा शादी वह करेंगे ही अपने इच्छित साथी से।अब त्यौहारों पर घर आते हैं माँ बाप के पास सिर्फ रस्म अदायगी हेतु।माँ बाप भी सभी को अपने बच्चों के बारे में गर्व से बताते हैं । दो तीन साल तक उनके पैकेज के बारे में बताते हैं। एक साल, दो साल, कुछ साल बीत गये । मां बाप बूढ़े हो रहे हैं । बच्चों ने लोन लेकर बड़े शहरों में फ्लैट ले लिये हैं। अब अपना फ्लैट है तो त्योहारों पर भी जाना बंद।अब तो कोई जरूरी शादी ब्याह में ही आते जाते हैं। अब शादी ब्याह तो बेंकट हाल में होते हैं तो मुहल्ले में और घर जाने की भी ज्यादा जरूरत नहीं पड़ती है। होटल में ही रह लेते हैं। हाँ शादी ब्याह में कोई मुहल्ले वाला पूछ भी ले कि भाई अब कम आते जाते हो तो छोटे शहर, छोटे माहौल और बच्चों की पढ़ाई का उलाहना देकर बोल देते हैं कि अब यहां रखा ही क्या है? खैर, बेटे बहुओं के साथ फ्लैट में शहर में रहने लगे हैं । अब फ्लैट में तो इतनी जगह होती नहीं कि बूढ़े खांसते बीमार माँ बाप को साथ में रखा जाये। बेचारे पड़े रहते हैं अपने बनाये या पैतृक मकानों में। कोई बच्चा #बागवान_पिक्चर की तरह मां बाप को आधा - आधा रखने को भी तैयार नहीं।अब साहब, घर खाली खाली, मकान कोठी खाली खाली और धीरे धीरे मुहल्ला खाली हो रहा है। अब ऐसे में छोटे शहरों में कुकुरमुत्तों की तरह उग आये #प्रॉपर्टी_डीलरों की गिद्ध जैसी निगाह इन खाली होते मकानों पर पड़ती है । वो इन बच्चों को घुमा फिरा कर उनके मकान के रेट समझाने शुरू करते हैं । उनको गणित समझाते हैं कि कैसे घर बेचकर फ्लैट का लोन खत्म किया जा सकता है । एक प्लाट भी लिया जा सकता है। साथ ही ये किसी बड़े लाला को इन खाली होते मकानों में मार्केट और गोदामों का सुनहरा भविष्य दिखाने लगते हैं। बाबू जी और अम्मा जी को भी बेटे बहू के साथ बड़े शहर में रहकर आराम से मज़ा लेने के सपने दिखाकर मकान बेचने को तैयार कर लेते हैं। आप स्वयं खुद अपने ऐसे पड़ोसी के मकान पर नज़र रखते हैं । खरीद कर डाल देते हैं कि कब मार्केट बनाएंगे या गोदाम, जबकि आपका खुद का बेटा छोड़कर पूना की IT कंपनी में काम कर रहा है इसलिए आप खुद भी इसमें नहीं बस पायेंगे।हर दूसरा घर, हर तीसरा परिवार सभी के बच्चे बाहर निकल गये हैं। वही बड़े शहर में मकान ले लिया है, बच्चे पढ़ रहे हैं,अब वो वापस नहीं आयेंगे। छोटे शहर में रखा ही क्या है । इंग्लिश मीडियम स्कूल नहीं है, हॉबी क्लासेज नहीं है, IIT/PMT की कोचिंग नहीं है, मॉल नहीं है, माहौल नहीं है, कुछ नहीं है साहब, आखिर इनके बिना जीवन कैसे चलेगा?भाईसाब ये खाली होते मकान, ये सूने होते मुहल्ले, इन्हें सिर्फ प्रोपेर्टी की नज़र से मत देखिए, बल्कि जीवन की खोती जीवंतता की नज़र से देखिए। आप पड़ोसी विहीन हो रहे हैं। आप वीरान हो रहे हैं।आज गांव छोटे शहर सूने हो चुके हैं बड़े शहर कराह रहे हैं |सूने घर आज भी राह देखते हैं.. वो बंद दरवाजे बुलाते हैं पर कोई नहीं आता...

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#संगरिया 😜#दौडते_दौडते_भ्रष्टाचार 😜MLA कोटे से खेल सामान की खरीद में भ्रष्टाचार: नौकर-करीबी लोगों को करोड़ों का ठेका; वित्तीय मंजूरी के बाद रजिस्टर्ड कराई फर्मबहरोड़ विधायक बलजीत यादव के कोटे से सरकारी स्कूलों के लिए स्पोर्ट्स सामान की खरीद में भ्रष्टाचार की बात सामने आ रही है। खरीद वाली फर्मों और सामानों की गुणवत्ता पर सवाल खड़े हो गए हैं । करीब तीन करोड़ रुपए से अधिक के ठेके ऐसी फर्मों को दिए गए, जो हाथों-हाथ या कुछ समय पहले ही रजिस्टर्ड कराई गई थीं।जिन फर्मों से सामान खरीद बताया गया है, उनमें से किसी ने भी जीएसटी जमा नहीं कराया है। जिनके नाम से फर्म रजिस्टर्ड हैं, वे विधायक के नजदीकी हैं। इनमें से दो फर्मों तो सरकार की ओर से वित्तीय मंजूरी जारी किए जाने के बाद रजिस्टर्ड कराई गईं।फर्मों का ऐसे काम से कोई लेना देना नहीं है। भास्कर ने ग्राउंड पर जाकर देखा तो फर्म का जहां ऑफिस बताया गया है, वहां पर निवास पाया और खेल के नाम का बहरोड़ विधायक बलजीत यादव के कोटे से सरकारी स्कूल के लिए खरीदा गया खेल सामान।जिन चार फर्मों को ठेका दिया, उनमें से किसी ने भी जमा नहीं कराया जीएसटी विधायक द्वारा एक बार 19 स्कूलों को 9-9 लाख रुपए की सिफारिश की गई। राज्य सरकार की ओर से इसकी वित्तीय स्वीकृति 16 फरवरी 2022 को जारी की गई। वित्तीय स्वीकृति के बाद 'शर्मा स्पोर्ट्स' नाम की फर्म का 6 जून 22 को रजिस्ट्रेशन हुआ। इन 19 स्कूलों का टेंडर 18 जुलाई को इसी कंपनी को दे दिया गया।टेंडर की यह राशि लगभग एक करोड़ 71 लाख रुपए है। जिस शर्मा स्पोर्ट्स को सबसे बड़ा ठेका मिला, उसका मालिक नवीन कुमार है। वह जयपुर में विधायक के शोरूम में काम करता है। कंपनी के रजिस्ट्रेशन में जो पता दिया गया है, भास्कर पहुंचा तो वहां निवास स्थान मिला। खेल का बिजनेस होने की भी किसी तरह की कोई जानकारी नहीं मिली।अनुशंसा की गई। इसकी स्वीकृति 5 मई 2021 को जारी की गई। ठेका 'बालाजी कंप्लीट सॉल्यूशन प्राइवेट लिमिटेड' को दिया गया, जिसका रजिस्ट्रेशन 17 मई को हुआ।बीरनवास, कायसा, काठूवास और डूमडोली को 9-9 लाख रुपए की स्वीकृति 5 अगस्त 2021 को जारी की गई। ठेका देने के लिए एक से अधिक फर्मों का होना आवश्यक है, इसलिए 28 सितंबर 21 को 'सूर्या स्पोर्ट्स फर्म' का रजिस्ट्रेशन करवाया गया और ठेका 3 दिसंबर को 'बालाजी कंपलीट सॉल्यूशन प्रा.लि.' को दे दिया।रायसराना, माजरीकलां महतावास, गिगलाना, तलवाना रोडवाल, रैवाना, खूंदरोठ स्कूल को 9-9 लाख की अनुशंसा के बाद वित्तीय स्वीकति 10 सितंबर2021 को मिली। इनमें से 5 स्कूलों (रायसराना, माजरीकलां, महतावास, गिगलाना, तलवाना) का टेंडर लगाया। इसमें 3 फर्म (बालाजी, सूर्या, राजपूत ) शामिल हुईं। इसमें 4 जनवरी 22 को बैट का टेंडर सूर्या को और बाकी बालाजी को दिया गया।रोडवाल, रैवाना, खूंदरोठ का टेंडर अलग से लगाया गया। उसमें भी ये तीनों फर्म ही शामिल हुईं। इसमें सारे सामान का टेंडर 18 जनवरी 22 को राजपूत फर्म को दे दिया गया, जिसका रजिस्ट्रेशन 9 अक्टूबर 2021 को हुआ।कुल खरीद लगभग 3 करोड़ : एक स्कूल को 9 लाख का सामान, 1 बैट की कीमत 15,600 रुपएकुल 32 स्कूलों को सामान दे दिया गया है, शेष को देना है। जो बैट दिया गया है, उसकी प्रत्येक की कीमत 15 हजार 600 रुपए तय की गई, ज्यादातर स्कूलों को 50-50 बैट दिए गए हैं। जो बैट स्कूलों में पहुंचा, उसकी कीमत पर सीधा सवाल है। विशेषज्ञों का कहना है कि इसकी जांच की जाएगी तो मामला सामने आ जाएगा। दावा है कि बैट सनी गोल्ड इंग्लिश विलो कंपनी का है। जबकि भास्कर ने कई स्कूलों में देखा तो पाया कि बैट पर न तो एमआरपी है और न ही कंपनी की कोई ब्राडिंग, जबकि कंपनी इसके बिना सेल ही नहीं करती। अन्य सामान की कीमतें भी मुद्दे, जिनकी जांच हो तो खुल सकता है मामला1. वित्तीय स्वीकृति के बाद ठेके के लिए इंतजार क्यों किया गया?2. जिन फर्मों को ठेका दिया गया, उनके मालिक कौन हैं?3. जिस कंपनी का बैट 15,600 रुपए का बताया, उस कंपनी से जांच की जाए, इस फर्म ने माल कब खरीदा, उसके भुगतान व जीएसटी के भुगतान की जांच की जाए भुगतान के दो दिन बाद पैसा विधायक के रिश्तेदार के खाते में - संजय यादवराजस्थान प्रदेश कांग्रेस कमेटी के सदस्य संजय यादव ने कहा कि मुझे इस मामले की जानकारी मिली तो मैंने एसीबी जयपुर व लोकायुक्त को पूरी जानकारी दी। इसकी....

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